आज (सोमवार, 1 अप्रैल) चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की सप्तमी है और कल (मंगलवार, 2 अप्रैल) अष्टमी रहेगी। इन दो तिथियों पर देवी शीतला के लिए व्रत किया जाता है। इस व्रत में ठंडा यानी बासी खाना खाते हैं। कुछ क्षेत्रों में सप्तमी और कुछ क्षेत्रों में अष्टमी तिथि पर ठंडा खाना खाने की परंपरा है।
शीतला माता गधे की सवारी करती हैं, उनके हाथों में कलश, झाड़ू, सूप (सूपड़ा) रहते हैं। देवी शीतला नीम के पत्तों की माला धारण किए रहती हैं। शीतला माता को सिर्फ ठंडे खाने का ही भोग लगाना चाहिए।
मान्यता - मौसमी बीमारियों से बचाता है ये व्रत
शीतला सप्तमी और अष्टमी सर्दी और गर्मी के संधिकाल में आता है। अभी शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय है। दो ऋतुओं के संधिकाल में खान-पान का विशेष ध्यान रखना चाहिए। संधिकाल में खानपान से जुड़ी सावधानी रखी जाती है तो कई मौसमी बीमारियों से बचाव हो जाता है। जो भक्त ये व्रत करते हैं, वे बासी यानी ठंडा खाना ही खाते हैं।
वर्ष में एक दिन सर्दी और गर्मी के संधिकाल में ठंडा भोजन करने से पेट और पाचन तंत्र को लाभ मिलता है। ऋतुओं की संधिकाल में बुखार, फोड़े-फूंसी, आंखों से संबंधित परेशानियां आदि होने की संभावनाएं रहती हैं, शीतला सप्तमी या अष्टमी पर बासी भोजन करने से इन बीमारियों से राहत मिल सकती है। शीतला माता की पूजा करने वाले लोगों को इन तिथियों पर गर्म खाना खाने से बचना चाहिए।
जानिए इस व्रत और देवी शीतला से जुड़ी खास बातें...
शीतला माता का स्वरूप अन्य देवियों से एकदम अलग है। देवी मां गधे की सवारी करती हैं। शीतला माता के हाथों में कलश, झाड़ू, सूप यानी सूपड़ा रहता है।
मां शीतला नीम के पत्तों से बनी माला धारण करती हैं। कलश, झाड़ू, सूप और नीम ये सभी चीजें साफ-सफाई से संबंधित हैं। देवी शीतला का स्वरूप संदेश देता है कि हमें हमेशा साफ-सफाई का ध्यान रखना
चाहिए। जो लोग साफ-सफाई से नहीं रहते हैं, गंदगी में रहते हैं, उन्हें मौसमी बीमारियां बहुत जल्दी होने की संभावनाएं रहती हैं।
देवी मां की नीम की माला संदेश देती है कि नीम हमारी त्वचा के लिए फायदेमंद होता है। नीम के सेवन सेहत को कई लाभ मिलते हैं। ध्यान रखें नीम का सेवन किसी डॉक्टर से सलाह लेकर ही करना चाहिए।
शीतला माता का ये व्रत दो ऋतुओं के संधिकाल में किया जाता है। अभी शीत ऋतु के जाने का और ग्रीष्म ऋतु के आने का समय है, इस समय को संधिकाल कहा जाता है। इस समय में स्वास्थ्य संबंधित सावधानी न रखी जाए तो मौसमी बीमारियां होने की संभावनाएं बनी रहती हैं।
इन दो दिनों में शीतला माता को भक्त बासी यानी ठंडा खाने का भोग लगाते हैं और खुद ठंडा खाना ही खाते हैं। मान्यता है कि इस समय में ठंडा खाना खाने से भक्तों को ऋतु परिवर्तन से होनी वाली मौसमी बीमारियां जैसे सर्दी-कफ, फोड़े-फूंसी, आंखों से संबंधित और त्वचा संबंधी बीमारियां होने की संभावनाएं कम हो जाती हैं।
ये इस व्रत से जुड़ी कथा
शीतला माता के इस व्रत से जुड़ी कथा के अनुसार पुराने समय में एक दिन किसी गांव के लोगों ने देवी मां को गर्म खाने का भोग लगा दिया था, जिससे देवी मां का मुंह जल गया और वह क्रोधित हो गई थीं।
शीतला माता के क्रोध की वजह से उस गांव में आग लग गई थी। पूरा गांव जल गया, लेकिन उस गांव में रहने वाली एक बूढ़ी औरत का घर बच गया था।
गांव के लोगों ने बूढ़ी महिला से बात की तो उसने बताया कि मैंने शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाया था। शायद इस वजह से मेरा घर आग से बच गया। बुढ़िया की बात मानकर गांव के लोगों ने शीतला माता को ठंडा खाना अर्पित करना शुरू कर दिया। तभी से शीतला माता को ठंडे खाने का भोग लगाने की परंपरा शुरू हुई है।
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